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Bhagwat Kaha Day 2 || Vraah Avtar Ki Katha

Bhagwat Kaha Day 2 || Vraah Avtar Ki Katha

चलिए वेदांतरस की माध्यम से हम श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन के कथा का स्मरण करते है। 

वराह अवतार की कथा :

भगवान इस अवतार को यज्ञावतार व संतोष का अवतार माना जाता है। वर जिसका मतलब होता है श्रेष्ठ और अह जिसका मतलब होता है दिवस इन दोनों शब्दों को मिलाकर ही बना है वराह। परन्तु फिर प्रश्न आता है आखिर दिवस श्रेष्ठ कौन है ? तो गुरु भगवान कहते है की जिस किसी भी दिन हमारे हाथ से कोई अच्छा कर्म होता है तो वही दिन दिवस श्रेष्ठ है, लेकिन इसके बाद सवाल ये आता है की अच्छा कर्म क्या है तो फिर गुरु भगवान कहते है की जिस कर्म से हमारे प्रभु को प्रसन्नता मिलती है उसकी अच्छे कर्म यह सत्कर्म कहते है।और ऐसी सत्कर्म को ही यज्ञ कहते है। 

हमारी गुरु भगवान बताते है की जब भी लाभ होता है तो लाभ को देख लोभ अवश्य होता है और जहाँ पर लोभ आ जाता है  उस स्थान पर पाप बढ़ जाता है और पाप बढ़ने की वजह से धरती अथवा मानव समाज दुखी हो जाता है और दुःख रूपी रसातल में डूब जाता है। गुरु जी बताते है की श्री भगवान को काम अर्थात रावण और कुम्भकरण को मारने के लिए एक ही अवतार लिया था और क्रोध को मारने के लिए अर्थात शिशुपाल को मारने के लिए भी एक ही श्री कृष्ण का अवतार लिया था लेकिन लोभ जैसे पाप को मारने के लिए दो दो अवतार एक वराह जी का और दूसरा नृसिंह जी का अवतार लेना पड़ा। 

 

हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु :

हिरण्याक्ष जिसका अर्थ होता है संग्रह वृति और हिरण्यकशिपु जिसका अर्थ होता है भोग वृति। अर्थात बहुत अधिक एकत्र करना है बहुत अधिक भोग करना दोनों ही लोभ के समान है। जैसा की हमने देखा काम और क्रोध को मारने के लिए भगवान ने सिर्फ एक ही रूप लिया परन्तु लोभ को मारने के लिए उनको दो दो रूप लेना पड़ता है। जिससे पता चलता है की लोभ को हराना और उसपर जीत पाना कितना मुश्किल है। 

हिरण्यकश और हिरण्यकशिपु ऋषि कश्यप और उनकी दिति के जुड़वा पुत्र थे। ये दोनों असुर थे और 100 वर्ष तक अपनी माँ के गर्भ में रहने के बाद जन्म लिए और इन दोनों को लोभ का अवतार माना जाता है। जब इन दोनों ने इस दुनिया में जन्म लिया तो पूरे पृथ्वी और आकाश में बहुत तरीकों के उत्पात होने लगा और हर जगह अँधेरा सा छा गया। पृथ्वी हो या पर्वत सब कांपने लगे पशु पक्षी रोने लगे और गांवों में अकार  प्रकार के जानवरों के रोने की अमंगल आवाज सुनाई देने लगा और तो और गौ माता इतनी दर गयी थी की उनके स्तन से दूध की जगह खून निकलने लगा था पूरे आसमान में काले व घने बादल छा गए थे और हर जगह अँधेरा ही अँधेरा हो गया था। समुद्र भी मानव के तरह दुखी होकर ऊंची ऊँची लहरे उठाने लगा और भगवान की मूर्तियों से आंसू निकलने लगे थे सभी को लगा की अब संसार का अंत होने वाला है और सभी दुखी भाव से अपने अपने जगह पर छुपे हुए थे। ये दोनों भाई पैदा होते ही किसी पर्वत के समान विशालकाय शरीर वाले हो गये थे। 

भगवान ब्रह्मा से मिले वरदान से, दोनों भाई मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए बड़े ही निरंकुश हो गए थे। हिरण्याक्ष को देखते ही सभी देवता कही जाकर छुप जाते थे और वह हमेशा किसी न किसी से युद्ध का अवसर देखता रहता था और एक दिन समुद्र में घुस गया और वर्षों तक उसी में घूमता रहता और पाताल लोक में जाकर भगवान वरुण की को युद्ध के लिए चुनौती देने लगा। भगवान को इस बात पर बहुत गुस्सा हुआ लेकिन अपने क्रोध पर काबू करते हुए उन्होंने उसको समझाया की श्री हरी के अलावा तुम्हें कोई और संतुष्ट नहीं कर पायेगा इस बात पर हिरण्याक्ष क्रोधित होकर भगवान हरि को ढूंढने के लिए निकल गया। आगे पढ़े ......

वराह अवतार और हिरण्यकश्य का वध

वराह अवतार और हिरण्यकश्य का वध || Vraah Bhagwaan or Hirnakshya Ke Beech Yudha

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