एक बार एक संत जी जग्गनाथ पूरी से मथुरा के लिए ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। उस संत के पास एक बहुत ही सुंदर बांके बिहारी जी थे। संत जी हमेशा बिहारी जी को अपने साथ लिए रहते थे और उनकी बड़ी लगन व प्रेम भाव से उनकी सेवा करते तथा उनकी पूजा अर्चना करते थे। जब संत जी ट्रेन में यात्रा कर रहे थे तो उन्होंने बिहारी जी को अपनी बगल वाली सीट पर बिठाया और अन्य संतों के साथ भगवान के हरि कीर्तन व चर्चा करने में लग गए। संत जन भगवान की चर्चा इस प्रकार मग्न हो गए थे की जब उनकी ट्रेन स्टेशन पर आकर रुकी वो संत जी भी सभी संतों के साथ बिहारी जी को ट्रेन में ही छोड़ कर वहां से चल गए। वो लोग भगवान के गुणगान में इतने खो गए की उनको इस बात का पता ही नहीं चला और बिहारी जी उसी ट्रेन में ही रह गए।
संत जी सभी संतों के संग आश्रम पहुंचे और आश्रम पहुंच आराम करने के बाद जब भोजन प्रसाद ग्रहण करने का समय आया तो वो संत जी ने अपने बिहारी जी को भोग लगाने हेतु जब देखा तो बिहारी जी कही नज़र नहीं आये और फिर वो संत जी चिंतित होकर अपने बिहारी जी इधर उधर खोजने लगता है, किन्तु बिहारी जी तो मिले नहीं। फिर जब काफी खोजबीन के बाद भी बिहारी जी का पता नहीं चला तो वो संत परेशान होकर रोने लगा और बिहारी जी के वियोग में अन्न और जल दोनों त्याग दिया।
संत जी को परेशान देख उनके एक साथी संत ने कहा की वो उनको दूसरे और सुंदर चिन्हों से अंकित वाले नए बिहारी जी को दे देंगे लेकिन फिर भी संत ने कहा की उनको उनके ही पुराने बिहारी जी चाहिए जिनकी पूजा अर्चना वो करते आये है अब तक। तब वहीं पर मौजूद एक दूसरे संत ने पूछा की आपने बिहारी जी को कहा पर रखा था, मुझे ज्ञात होता है की बिहारी जी ट्रेन में ही छूट गए है। तब एक संत ने कहा की ट्रेन को निकले तो बहुत घंटे हो गए है और वो ट्रेन बहुत आगे भी जा चुकी होगी, ऐसे में मिलना अब तो मुश्किल ही प्रतीत होता है। तब वह संत जी बोले की मुझे स्टेशन मास्टर के पास ले चलो मुझे उनसे बात करनी है। सभी संतों संग वह संत जी स्टेशन मास्टर के पास पहुंचे और फिर संत जी ने अपनी बात स्टेशन मास्टर को बताई तब स्टेशन मास्टर ने पूछा की आप कौन सी ट्रेन से आये थे, संत जी ने अपने ट्रेन के बारे में बताया। स्टेशन मास्टर बोला की महाराज वही ट्रेन तो कई घंटे से भी ज्यादा देरी से स्टेशन पर खड़ी हुई है। जबकि उसमे कोई खराबी भी नहीं है इंजीनियर भी आया था और उसने चेक किया तो बताया न तो इंजन में भी कोई खराबी नहीं है ना ही कही ओर। उसके बाद वो संत जी उस ट्रेन में गए तो देखा की बिहारी जी वही बैठे हुए थे। और जैसे ही संत ने देखा बिहारी जी को उन्होंने तुरंत उनको लगाकर गले लगा लिया और फिर जब ट्रेन से नीचे उत्तर कर उन्होंने सब बात स्टेशन मास्टर और सभी इंजीनियर को बताया तो वहां पर उपस्थित सभी लोग हैरान हो गए बांके बिहारी जी के नारे लगाने लगे। उसके बाद वहां पर उपस्थित लोगों ने अपनी बची हुई जिंदगी भगवान व उस संत जी के सेवा में लगा दिया।