आइये वेदांतरस के माध्यम से जानते है हम अपने प्रिय श्री कृष्ण को लड्डू गोपाल के नाम से क्यों पुकारते है।
जन्माष्टमी के छह दिन बाद लड्डू गोपाल का छठा दिन मनाया जाता है। छठे दिन लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। उन्हें स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनाए जाते हैं और उन्हें भोग लगाया जाता है। इस दिन लड्डू गोपाल का नाम भी रखा जाता है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को कई नामों से जाना जाता है।
ठाकुर जी, कान्हा, लड्डू गोपाल, माधव, नंदलाला, देवकीनंदन आदि कई नाम हैं। इनमें से एक नाम उस दिन रखा जाता है, और उन्हें उसी नाम से पुकारा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल कैसे पड़ा? नहीं, तो आइए एक नजर डालते हैं इस पर...
श्री कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल कैसे पड़ा (श्री कृष्ण नाम लड्डू गोपाल)
कहा जाता है कि ब्रजभूमि में कुम्भदास भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। कुम्भनदास का एक पुत्र था- रघुनन्दन। कुम्भदास सदैव श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। और भगवान की सेवा के कारण, वह उन्हें छोड़कर कहीं नहीं गया।
एक बार उन्हें वृंदावन से भागवत करने का निमंत्रण मिला। पहले तो कुंभदास ने उन्हें मना कर दिया, फिर लोगों के बहुत जोर देने पर वे मान गए। उन्होंने सोचा कि वे भगवान की सेवा की तैयारी करके जाएंगे और दैनिक कथाएं करके लौट आएंगे। कुम्भदास ने भोग की सारी तैयारियाँ कर लीं और अपने पुत्र रघुनन्दन को समझाया कि ठाकुर जी को भोग लगा कर कथा करने चला गया।
रघुनंदन ने ठाकुर जी के सामने भोजन की थाली रखी और उनसे भोग लगाने का अनुरोध किया। उनके बच्चे के मन में एक छवि थी कि ठाकुर जी अपने हाथों से खाना खाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहुत देर तक प्रतीक्षा करने के बाद जब भोजन की थाली ऐसी ही रह गई तो रघुनंदन जोर-जोर से रोने लगा और ठाकुर जी को पुकार कर कहा, आओ और भोग लगाओ।
रघुनन्दन के इस आह्वान के बाद ठाकुर जी बालक का रूप धारण करके भोजन करने बैठ गए। जब कुम्भदास ने घर आकर रघुनन्दन से प्रसाद माँगा तो उसने कहा कि ठाकुर जी ने सब खा लिया है। कुम्भदास को लगा कि बच्चा भूखा रहा होगा, उसने सारा खाना खा लिया होगा। लेकिन अब यह रोज की कहानी हो गई है। अब कुंभदास को शक होने लगा। तो एक दिन उसने लड्डू बनाकर एक थाली में रख दिए और छिपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है।