एक बार भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणि जी अपने महल में थे। भगवान श्री कृष्ण उस वक्त भोजन कर रहे थे भगवान श्री कृष्ण भोजन कर ही रहे थे की अचानक से ना जाने उनके मन में क्या आया वो बिना भोजन पूरा किये ही उठ खड़े हुए और द्वार की तरफ तेज़ी से भागते हुए गए परन्तु कुछ समय पश्चात वह पुनः दुखी मन से वापस आ गए और अपना बचा हुआ भोजन करने लगे।
यह सब देख कर रुक्मणि जी थोड़ा अचंभित हुई अतः उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से पूछ ही लिया कि " हे प्रभु आप इतने अच्छे मन से भोजन कर रहे थे परन्तु बिना भोजन समाप्त किये आप कहा चले गए थे अचानक से और जब आप वहां से आपस आये तो इतने दुखी क्यों हो ?
तब भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणि जी के बातों का जवाब देते हुए कहा कि मेरा एक भक्त फ़क़ीर है जो की मेरे ही राज्य में से होकर गुज़र रहा था था और वह इकतारे पर मेरे नाम की एक मनमोहक धुन बजाते हुए अपनी ही मस्ती में कही जा रहा था। परन्तु कुछ लोग उसे पागल समझ कर उसको पत्थर से मार रहे थे जिससे उसको काफी चोटें भी आयी है। और उसका मजाक बना रहे थे और जबकि फ़क़ीर भक्त मेरा ही नाम गुनगुनाते हुए फिर चले ही जा रहा था। पत्थर से चोट लगने की वजह से उसके माथे से खून निकल रहा था वह बिलकुल असहाय हो चूका था। वह असहाय है यही सोच कर मैं तुरंत अपना भोजन छोड़कर उसके पास उसका सहायता करने के लिए चला गया।
रुक्मणि जी ने फिर पूछा जब आप उसकी सहायता करने गए थे तो आप दुखी मन से वापस क्यों आ गए ?
तब भगवान श्री कृष्ण जी रुक्मणि जी से कहा की मैं उसकी मदद करने के लिए द्वार पर पहुँचा ही था की मैंने देखा उस फकीर ने इकतारे को जमीन पर फेंक कर और खुद भी पत्थर उठा कर दूसरों को मारने लगा, और वह अब खुद ही लोगों को जवाब देने लगा और उसे अब मेरी जरूरत नहीं थी। अगर वो थोड़ी देर और ठहर जाता तथा मेरे ऊपर विश्वास रखता तो मैं स्वयं उसकी मदद करने के लिए आता।
अक्सर लोग ऐसी ही स्थिति में आकर भगवान पर से भरोसा खो देते है भगवान जरा सी परीक्षा लेते है और हम अपना धैर्य बना कर नहीं रख पाते है। इसीलिए कहते है की भगवान पर भरोसा हमेशा बनाये रखना चाहिए।
आशा करते है वेदांतरस के माध्यम से आपने जो ये भगवान की कथा पढ़ी वो आपको जरूर पसंद आयी होगी
जय श्री कृष्णा