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श्री वृंदावन धाम || Vrindavan Dham

श्री वृंदावन धाम || Vrindavan Dham

श्री वृंदावन धाम 

श्री धाम वृंदावन इस धरती पर एक दिव्य स्थान है। लेकिन हम जिस वृंदावन धाम के दर्शन करते हैं, वह अलग स्वरूप है और जो संत जो प्रभु की सेवा करते हैं उनके लिए वृंदावन धाम अलग रूप में प्रगट होता है। श्री धाम वृंदावन के वास्तविक रूप को समझ पाना हम जैसे साधारण मनुष्यों के लिए समझ पाना आसान नहीं है। इसे तो किसी महापुरुष और किसी संत के सानिध्य में ही समझा जा सकता है। वहाँ के रज की बात भी अलग ही है।

“वृदांवन के वृक्ष को मर्म ना जाने केाय,

डाल-डाल और पात-पात श्री राधे राधे होय”

ब्रह्म पुराण में बताया गया है कि वृंदा राजा केदार की पुत्री थीं। उन्‍होंने इस वनस्‍थली में कठोर तप किया था। इसलि ए भी इस वन का नाम वृंदावन पड़ा। वृंदा अर्थात राधा रानी अपने प्रियतम श्री कृष्‍ण से मिलने की तमन्‍ना लिए इस वन में निवास करती हैं।

वृन्दावन यमुना नदी से तीन ओर से घिरा हुआ है और इसकी प्राकृतिक छटा बहुत निराली है। वृंदावन धाम का प्राचीन अतीत हिंदू संस्कृति और इतिहास से जुड़ा है। माना जाता है कि वल्लभाचार्य 11 वर्ष की उम्र में वृंदावन आए थे। बाद में उन्होंने भारत में 3 तीर्थस्थानों का प्रचार किया और नंगे पांव जाकर 84 स्थानों पर भगवद् गीता का प्रवचन दिया। वह प्रत्येक वर्ष चार महीने वृंदावन में रुकते थे। इस प्रकार वृंदावन में उनके पुष्टिमार्ग ने लोगों को बहुत प्रभावित किया।

वृंदावन का सार 16वीं शताब्दी तक विलुप्त होने लगा था, जब इसे चैतन्य महाप्रभु द्वारा फिर से खोजा गया। 1515 में, चैतन्य महाप्रभु ने भगवान श्री कृष्ण के पारलौकिक अतीतयह माना जाता था कि दैवीय आध्यात्मिक शक्ति के कारण वह वृंदावन और उसके आसपास श्री कृष्ण के अतीत के सभी महत्वपूर्ण स्थानों को खोजने में सक्षम थे। उसके बाद मीराबाईभी मेवाड़ छोड़ कर वृंदावन आ गई थीं। इस प्रकार वृंदावन धाम अपने प्राचीन इतिहास के कारण प्रसिद्ध है।

अनेक संतों ने यहाँ भगवान की लीलाओं का दर्शन किया है और उन्हें किसी न किसी रूप में प्रकट भी किया है। आज हम लोग भी श्री धाम वृंदावन के कुछ पुराने चित्रों का दर्शन करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें भी वृंदावन जी का वास प्रदान करें। हमारी आस्था सदैव उनमें बनी रहे और उनकी कृपा हमारे ऊपर।

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