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भक्त नूर की कहानी।। Bhakt Noor Ki Kahani

भक्त नूर की कहानी।। Bhakt Noor Ki Kahani

तो श्रोतागण आपने भक्त नूर का नाम तो कभी ना कभी सुना ही होगा, आइये आज वेदांतरस के माध्यम से कि भक्त नूर, नूर मोहम्मद से भक्त नूर कैसे बने। 

एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुए भक्त नूर का पूरा नाम नूर मोहम्मद था। नूर मोहम्मद जब बड़े हुए तो उन्होंने देखा कि ये पूरी दुनिया सिर्फ जाति, और धर्म सम्प्रदायों के बीच के बीच ही घिरी हुई है। और ऐसी दुनिया को देख नूर मोहम्मद बहुत ही दुखी हुए। लेकिन नूर मोहम्मद ने निश्चय किया कि वो किसी एक धर्म समुदाय को नहीं अपनाएंगे, उनके लिए सभी धर्म एक समान है। उसके बाद नूर मोहम्मद सब कुछ छोड़ कर संत और फकीरों कि संगत की और उन लोगों के साथ रहने पर नूर, मोहम्मद को एहसास हुआ कि लोगों ने धर्म के नाम पर इंसानियत के टुकड़े टुकड़े कर दिए है। 

फिर ऐसे ही भ्रमण करते करते नूर मोहम्मद वृंदावन जा पहुंचे, और यमुना तट पर जाकर ढलते हुए सूरज को बड़ी रुचि के साथ देख रहे थे, तभी उनके कानों में एक मधुर स्वर सुनाई दिया ये आवाज किसी संत की थी। नूर मोहम्मद ने देखा की एक संत जिनका नाम श्री भगवत रसिक देव जी था। वो एक रज अपने शरीर पर लपेटे हुए अपनी मस्ती में श्याम का नाम ले रहे थे। 

तब नूर मोहम्मद उनके पास जाकर पूछे की हे संत आप तो बहुत अच्छा गाते है परन्तु इस एकांत जगह पर किसको सुना रहे हैं ?

तब संत ने जवाब दिया की ये संगीत मैं अपने श्याम को सुना रहा  हूँ । 

फिर नूर मोहम्मद पूछते है कि अपने ? क्या वो सिर्फ आपके है संत जी ? और किसी के नहीं ? नूर मोहम्मद कि ये बात सुन संत जी थोड़ा मुस्कराये और फिर बोले नहीं ऐसा नहीं वो तो सबके है और सब उनके किसी विशेष मात्र के नहीं है। 

फिर नूर मोहम्मद ने कहा कि कुछ और बताईये श्याम के बारे में 

तब संत जी फिर पूछते है नूर मोहम्मद से कि क्या तुमने कभी श्री हरिदास जी का नाम सुना है तो नूर मोहम्मद बोलता है हाँ हाँ ! सुना हूँ वही हरिदास जी जिनका दर्शन महान राजा अकबर को मिला था और वो उससे कृतार्थ हो गए। 

संत जी बोलते है हाँ वही हरिदास जी। और उनके प्रिय दुनिया में वही जा सकता है जो श्याम का हो गया हो। 

फिर संत ने पूछा कि क्या तुमने कभी बाँके बिहारी जी के दर्शन किये हो ?

नूर मोहम्मद कहता है नहीं संत जी परन्तु आप मुझे के बात बताओ इस माया काल से परे रहने वाले श्याम कि प्रतिमा ?

तब संत नूर मोहम्मद को समझते हुए पूछते है कि क्या तुम्हें प्यास लगती है ?

नूर मोहम्मद बोलता है कि जी संत जी रोज लगता है। 

संत जी फिर पूछते है जल पीते हो फिर ?

नूर मोहम्मद कहता है हाँ जी पीता हूँ। 

फिर संत जी कहते जल पी कर तृप्ति मिलती है नूर मोहम्मद कहता है हाँ जी। 

तब संत जी बोलते है तृप्ति कि कोई प्रतिमा होती है ? नूर  मोहम्मद बोलते है नहीं ?

संत जी फिर कहते है कि जल ही तृप्ति कि प्रतिमा है। जल से तृप्ति मिलती है और तृप्ति और जल दोनों एक समान है। और ये अनुभव करने के बाद ही एहसास होगा। आज तुम प्रेम पूर्वक और ध्यान लगा कर बांके बिहारी जी के दर्शन करो अवश्य तुमको भी इस चीज का एहसास होगा। बांके बिहारी के मंदिर की तरफ चल पड़े। और जब मंदिर पहुंचे और मंदिर में प्रवेश करने कि कोशिश कि तो वहां के पुजारियों ने उनको अंदर जाने से मना कर दिया और कहा कि इस मंदिर में यवनों (मुस्लिम) को मंदिर में प्रवेश करने कि अनुमति नहीं है। 

तब नूर मोहम्मद ने कहा की हे महाराज मैंने सभी धर्म त्याग दिए है और सिर्फ स्वामी जी का अनुसरण करता हूँ। और मुझे दर्शन करने का अधिकार है ऐसा एक संत जी ने मुझसे कहा है। नूर मोहम्मद के लाख कोशिशों के बाद में उसको मंदिर में जाने नहीं दिया जाता है। तब नूर मोहम्मद मंदिर के पीछे जाकर एक स्थान पर बैठ गए और बिना भूख प्यास की चिन्ता किये बस एक ही नाम लगातार जपता रहा बिहारी जी  बिहारी जी बिहारी जी।। रात हो गयी बिहारी जी की शयन आरती कर मंदिर को बंद कर दिया गया। लेकिन तब भी नूर मोहम्मद वहीं बैठ कर बिहारी जी बिहारी जी का रट लगाते रहे। जैसे तैसे रात बीतती गयी और ना जाने कहाँ से उसके कान में संगीत के स्वर सुनाई देने लगे और नूर मोहम्मद भी उसी संगीत के साथ बिहारी जी बिहारी जी नाम की भी धुन जाता गया। 

तभी अचानक से कोई सुकुमार आकर नूर मोहम्मद की ठोड़ी को पकड़ कर उनसे कह रहा था की उठो ये बिहारी जी का प्रसाद पा लो बिहारी  जी स्वयं तुम्हारे लिए भेजा है। तब नूर मोहम्मद बोलता है की पहले तो मंदिर में जाने नहीं और अब प्रसाद भिजवा रहे। मैं जब तक बिहारी जी की दर्शन नहीं कर लूंगा जल की एक बूंद तक नहीं ग्रहण करूँगा। वो इतना कहा ही था की वो सुकुमार किशोर नूर मोहम्मद के कंधे पर हाथ रखते हुए बोलता है की आँखें खोलोगे तब दर्शन करोगे की बंद आँखों से ही। फिर जैसे ही नूर मोहम्मद ने अपनी आँखें खोली तो उसने एक मुस्काते हुए चमकदार प्रकाश के साथ एक किशोर को देखा और वो किशोर कोई और नहीं हमारे बांके बिहारी जी ही थे। 

कहा जाता है की उसके बाद से कभी भी नूर मोहम्मद किसी को दिखाई नहीं दिए है। 

पर रोजाना यहाँ पर स्नान करने वालों की माने तो कभी कभी नूर मोहम्मद की आवाज यमुना जी की लहरों के तरंगों के साथ सुनाई देती है। 

।। श्री बांके बिहारी जी।

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