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देवताओं पर भगवान श्रीकृष्ण जी की कृपा || Lord Krishna

देवताओं पर भगवान श्रीकृष्ण जी की कृपा || Lord Krishna

वेदांतरस की माध्यम से एक बार फिर भगवान श्री कृष्ण की कृपा के बारे में जानेंगे।। भगवान श्री कृष्ण जब पृथ्वी पर प्रकट हुए और विभिन्न  लीलाएँ  की तो देवगण भी उनकी लीलाओं के दर्शन पाकर या भगवान श्रीकृष्ण की पधरावनी करने का लोभ संवरण ना कर सके। ऐश्वर्यमय सृष्टि नियंता भगवान के रूप में तो उन पर कृपा है ही। लेकिन देवगण भी यही चाहते थे कि भगवान की नर स्वरूप लीला की भी कृपा हमारे ऊपर हो। इसी भावना से ब्रह्मा ने गोवत्स चुराए और अंततः भगवान के उस बाल स्वरूप का दर्शन कर उनकी स्तुति की, यहां तक कि उन को कष्ट देने पर भी आनंद का अनुभव किया।

जब ब्रह्मा ने इस प्रकार किया और इंद्र ने भी भगवान के साथ कुछ गड़बड़ी की लेकिन जब उन्हें समझ आया कि यह तो मेरे स्वामी परात्पर ब्रह्म साक्षात भगवान श्रीकृष्ण जी ही है। तब इंद्र ने भी उनकी कृपा लाभ की और इंद्र पर भी श्री कृष्ण प्रसन्न हुए और इंद्र ने भी नर रूप भगवान श्री कृष्ण जी के दर्शन कर अपने आप को धन्य किया। वरुण देवता जी ने भी जब देखा कि ब्रह्मा आनंद ले चुके हैं। इंद्र देव भी आनंद ले चुके हैं। तो क्यों ना मैं भी परात्पर ब्रह्म परमात्मा के श्री कृष्ण रूप की पधरावनी अपने महल में करवाऊं। उनकी इच्छा होते ही भगवान श्री कृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी करने की योजना बना ली। और एक दिन द्वादशी का पारण करने के लिए नंद बाबा ने रात्रि 3 बजे जैसे ही यमुना में स्नान हेतु प्रवेश किया तो उनको वरुण लोक ले जाया गया। जैसे ही कृष्ण को पता चला तब कृष्ण भी यमुना में प्रवेश कर वरुण लोक चले गए। वहां पाताल में वरुण या जल देवता ने नन्द बाबा की तो पूजा की ही साथ ही श्रीकृष्ण की भी सपरिवार पूजा की। और अंत में वरुण ने यह कहा :- हे प्रभु ! मैंने यदि आपके प्रति या आपके पिता के प्रति अपराध किया है तो आप मुझे दंड दीजिए। लेकिन मेरी हार्दिक इच्छा आप जानते हैं। मैंने यह जो उत्पात किया यह आपके श्री चरण वरुण लोक को पावन करे इस भावना से किया। यदि आप प्रसन्न है तो मुझ पर कृपा कीजिए। कृष्ण ने मंद मुस्कान भरी दृष्टि वरुण की तरफ करी और वरुणदेव समझ गए कि भगवान नाराज नहीं है प्रसन्न ही है। इस प्रकार कृष्ण की जो वृंदावन धाम की लीलाएँ हैं, वह इतनी आकर्षक है, इतनी माधुर्य भरी हैं, उनका स्वरूप इतना आनंदप्रद है कि देवगण भी उनका दर्शन। उनका सानिध्य प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। भले ही उसके लिए उनको उत्पात ही क्यों ना करना पड़े। ऐसे वृंदावन बिहारी लीला धारी पुरुषोत्तम बाल कृष्ण भगवान की जय हो। 

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