वेदांतरस के सभी भक्तों के एक बार फिर राधे राधे
हमारे मन में सदैव ही इच्छा व्यक्त होती है, कभी श्री हरी चरणों के दर्शन पाने की तो कभी सांसारिक मोह माया की हमारी कौन सी इच्छा को पूर्ण करना है और किसको नहीं ये श्री हरि विष्णु से बेहतर कौन जान सकता है
कुछ ऐसे ही है हमारी आज की कथा,
एक दिन की बात है, भगवान विष्णु गरुण जी पर सवार होकर कैलाश पर्वत की तरफ जा रहे थे। तभी रास्ते में गरुण जी ने देखा की एक ही दरवाजे पर दो बारातें आकर ठहरी थी। गरुण जी को ये बात बिलकुल भी समझ में नहीं आए, फिर क्या था गरुण जी ने भगवान विष्णु से पूछा की "हे प्रभु ! ये कैसी मोह माया है, एक ही कन्या के विवाह के लिए दो बारातें कैसे आ सकती है, मुझे कुछ समझ में नहीं आया। तब भगवान विष्णु ने कहा की "गरुण ! तुमने उचित कहा दोनों बारात अलग अलग जगह से आए है, जिसमें से एक बारात पिता की पसंद से आए है, तो दूसरी उसकी माँ की पसंद से आए है। दोनों लड़कों में से एक लड़का उसकी माँ को पसंद नहीं है, तो एक उसके पिता को । यह सुनकर गरुण जी बोले की तो आखिर कन्या का विवाह किसके साथ होगा। तब भगवान विष्णु बोले की कन्या का विवाह उसकी माँ की पसंद के लड़के से होगी। यह सुनकर गरुण जी मौन हो गए और भगवान विष्णु को कैलाश पर्वत पहुंचा कर पुनः उसी स्थान पर चले आए जहाँ पर एक कन्या विवाह हो रहा था।
गरुण जी ने वहां पहुँच कर अपने मन में ये विचार किया की अगर मैं माँ के पसंद वाले लड़के को यहाँ से हटा दूँ, तो देखता हूँ ये विवाह कैसे संभव हो पायेगा। फिर क्या ही था गरुण जी उस लड़के को भगवद्विधान दिखने की लालच देकर उसको तुरंत वहां से ले जाकर समुद्र के एक टापू पर पहुंचा दिया।
लेकिन फिर अचानक से उनके मन में सवाल आया की मैं इस लड़के को यहां पर लेके तो आया लेकिन इसके लिए कुछ खान पान की व्यवस्था तो की ही नहीं है, ऐसे तो यह भूख की वजह से मर जायेगा और वहां पर सभी बाराती मस्त सभी व्यंजन खा रहे होंगे। ये तो उचित बात नहीं है, ऐसे तो इसका सारा पाप मुझे ही मिलेगा। यह सब सोच कर उन्होंने सोचा की इसके खाने पीने का इंतजाम करता हूँ अगर विधि का विधान देखना है तो मुझे थोड़ी मेहनत तो करना ही पड़ेगा।
और इधर कन्या के घर पर वर के खो जाने की वजह से उसकी माँ निराश थी लेकिन फिर भी वो अपने फैसले पर अड़ी हुए थी अतः कन्या की माँ ने युक्ति लगाई और उसने अपनी कन्या को वर पक्ष के घर जाने वाली फल, फूल व मिष्ठान के टोकरे में बिठा दिया और उसके ऊपर से कुछ ओर फल फूल रख कर सजा दिया, उसकी माँ ने ऐसा इसलिए किया की वर पक्ष के लोग उस टोकरे को अपने घर ले जाए और लड़के को खोज कर उन दोनों का विवाह करा दे और कन्या की माँ ने अपनी यह बात किसी तरह से अपने होने वाले समधि यानि लड़के के पिता से कह दी।
अब ये संयोग की ही बात है और भाग्य की भी, जिस टोकरी में उस कन्या को छुपाया गया था, गरुण जी भी उसी टोकरी को लेकर उसी समुद्र के टापू पर ले गए। क्यूंकि ऊपर से तो उस टोकरी में खाने की सामग्री थी तो गरुण जी यही सोच कर उसको लेकर आए और उस टोकरी को उस लड़के के सामने रखा। अब क्या ही था भूख से व्याकुल वो लड़का जैसे ही खाने से भरी टोकरी देखता है तो तुरंत उसको खोले लगता है लेकिन जैसे ही ऊपर से कुछ सामग्री निकाली तो उसने देखा की उसमे 16 शृंगार से सजी एक कन्या उसमे बैठी हुई थी और वह वही लड़की थी जिससे उस लड़के की शादी होने वाली थी। जब गरुण जी ने ये देखते वो भी अचंभित रह गए। और तभी उन्होंने कहा की हरी इच्छा बलवान यानी की भगवान की जो मर्जी होती है वही होता है।
फिर गरुण जी ने स्वतः शुभ मुहूर्त देख कर खुद ही पुरोहित का कार्य किया और उन दोनों की विधि विधान से विवाह सम्पन्न कराया और उन दोनों को आशीर्वाद दे कर खुद ही उन दोनों कर उनके घर पहुँचा आए।
इसके पश्चात् गरुण जी वहाँ से वापस भगवान विष्णु के पास आए और उनको सारी घटना बताई और कहा कि "प्रभु ! आपकी लीला तो धन्य है आपने तो मेरे ही हाथों से उन दोनों का विवाह सम्पन्न कराया। हरि इच्छा से परे कुछ नहीं है
|| हरि बोल ||