वेदांतरस की माध्यम से एक बार फिर हम भगवान जी की एक और अनूठी कहानी लेकर आये है, एक बार की बात है एक व्यक्ति था जो की भगवान को बहुत ज्यादा ही मानता और वह हमेशा भगवान की पूजा पाठ किया करता था...और भगवान के भजन हमेशा गुनगुनाता रहता था। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वह व्यक्ति भी समय के साथ बूढ़ा होता गया। तो उसकी हिम्मत भी अब उसका साथ नहीं दे रही थी तो इसीलिए वो हमेशा एक कमरे में शांति से चुपचाप पड़ा रहता था। इसी तरह स्नान या आदि कार्य के लिए जाना होता था तो अपने बेटों को आवाज लगाकर बुलाते और स्नान व अन्य चीजों के लिए लेकर जाते थे। लेकिन वक्त गुजरता गया और धीरे धीरे बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद आते थे या तो आते ही नहीं थे, और देर रात बाद तो कभी नहीं आते थे और सुनकर अनसुना कर दिया करते थे जिसके कारण उस बूढ़े व्यक्ति को पूरी रात उसी गंदे बिस्तर पर गुजारनी पड़ती थी।
जब धीरे उम्र और बढ़ती गयी तो उस व्यक्ति की नज़रें भी उसका साथ छोड़ रही थी और जिसके बाद उस व्यक्ति को कम दिखाई देने लगा। एक रात की बात है एक बार फिर उन्होंने यानी उस बूढ़े व्यक्ति ने निवृत्त होने के लिए आवाज लगायी तो तुरंत एक लड़का भागते हुए आता है और बड़े ही प्रेम भाव से उस व्यक्ति को निवृत्त कराकर उसको उसके बिस्तर पर वापस छोड़ आता है। अब ऐसे ही प्रतिदिन जब वह बूढ़ा व्यक्ति आवाज लगाता तो वह लड़का तुरंत आकर उस व्यक्ति की सहायता करता।
फिर एक रात को उस बूढ़े व्यक्ति को शक हो जाता है और वह सोचने लगता है की पहले तो जब मैं बेटों को बार बार आवाज लगाता था तब भी वो नहीं आते थे और सुन कर अनसुना कर देते थे .. अब तो सिर्फ एक बार ही आवाज लगाने पर ये तुरंत कैसे आ जा रहे है और बड़े ही भाव से और सरलता के साथ मेरी सहायता कर रहे है। यह सब सोच कर एक रात बूढ़ा व्यक्ति उस लड़के का हाथ पकड़ लेता है और बोलता है की सच सच बता तुम कौन हो? तुम मेरे बेटे तो नहीं हो सकते है और मेरे बेटे तो इस प्रकार से और इतनी भाव से कभी मेरी सेवा नहीं की।
उस बूढ़े व्यक्ति के ऐसे कहने पर तभी उस अँधेरे कमरे में अचानक से एक उजाला हुआ और उस लड़के के रूप में आये भगवान अपने असली रूप में आकर उस बूढ़े व्यक्ति को अपना वास्तविक रूप दिखाते है।
जब वह व्यक्ति भगवान को देखता है तो अचंभित हो जाता है और रोने लगता है और कहता है कि हे भगवान ! अगर आप मुझसे इतना प्रसन्न हैं तो मुझे मोक्ष देकर इस नरक से हटा क्यों नहीं देते ?
तब भगवान जी उसके प्रश्न का जवाब देते हुए कहते हैं कि हे मनुष्य ! जो तुम भुगत रहे हो वो तुम्हारे ही कर्मों का फल है लेकिन तुम मेरे सच्चे भक्त हो और हमेशा मेरा नाम लिया करते हो इस लिए मैं तुम्हारे लिए यहाँ पर आया। और तुम्हारी सच्ची भावना के वजह से तुम्हारे काम कर रहा था। तब यह सुनकर वो व्यक्ति बोला की हे प्रभु ! क्या मेरे प्रारब्ध आपके आशीर्वाद से भी बड़े है?
तो उस व्यक्ति के एक प्रश्न को सुनकर भगवान थोड़े मुस्कुराये और बोले कि मेरी कृपा अवश्य तुम्हारे प्रारब्ध से भी बड़ी है और तुम्हारे इस प्रारब्ध को काट भी सकता हूँ लेकिन तुम्हें अगले जन्म फिर आना होगा इस प्रारब्ध को भुगतने के लिए फिर से आना पड़ेगा और यही सत्य है और यही और कर्मों के नियम है। इसीलिए मैं स्वयं अपने हाथों से तुम्हारे कर्मों के फल कटवा रहा हूँ।और इस जीवन से तुम्हें मुक्ति दिलाना चाहता हूँ। ऐसे ही जो भी भक्त मेरी सच्चे मन से मेरी पूजा आराधना करेगा तो मैं उसके प्रारब्ध में मैं स्वयं उसके साथ रहूँगा और उसको कभी तीव्रता का एहसास नहीं होने दूंगा।