• +91-8178835100
  • info@vedantras.com
भगवान गणेश को क्यों माना जाता है प्रथम पूज्य || Ganesh Ji Ki Kahani

भगवान गणेश को क्यों माना जाता है प्रथम पूज्य || Ganesh Ji Ki Kahani

हमारे हिंदू धर्म मे सदेव ही गजानन श्री गणेश प्रथम पूजनीय रहे हैं.. आपके मन मस्तिष्क मे ये प्रश्न भी आया ही होगा कि हमेशा किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश ही की पूजा क्यों करते है ??

तो चलिए वेदांतरस के माध्यम से जानते है इसके पीछे की वजह हैं.. 

हिंदू धर्म मे सभी देवी देवता एक समान और पूजनीय होते है, लेकिन एक दिन सभी देवताओं में आपस में विचार-विमर्श करते है की उन सब में सर्वश्रेष्ठ और प्रथम पूज्य कौन है ? और सभी अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बता रहे थे, सभी के विचार सुनने के बावजूद भगवान इसका निष्कर्ष नहीं निकल आए, तो सभी एक साथ भगवान ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। जब सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे तो उस समय भगवान ब्रह्मा जी पूरी तरह से अपने कार्य में विलीन थे और उस समय ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माण में लगे हुए थे और उनके पास देवताओं के लिए पंचायत करने का समय नहीं था तो कार्य करते करते ब्रह्मा जी ने देवताओं की पूरी बात सुनी और उन्होंने ये निर्णय लिया कि जो भी देवता पूरे धरती की चक्कर सबसे पहले लगा कर मेरे पास आएगा वही सब देवताओं में प्रथम पूजनीय होगा। 

बस तब क्या था भगवान ब्रह्मा के बोलते ही सभी देवता अपनी अपनी सवारी (वाहनों) पर विराजमान होकर जल्दी जल्दी पूरी पृथ्वी के भ्रमण करने के लिए निकल गए, इंद्रदेव जी अपने  ऐरावत हाथी पर बैठ कर निकल गए तो अग्नि देव अपने प्रिय वाहन पर निकल पड़े। 

इसी तरह सभी देवता अपने अपने वाहनों पर बैठ कर तेज़ी से निकल गए। लेकिन उन सभी में अगर कोई पीछे रह गया था तो वो थे भगवान गणेश जी, एक तो गणेश भरी शरीर के और उपर से उनका वाहन छोटा सा मूषक, मूषक भागता भी तो कितनी तेज़ भागता। 

क्यूंकि भगवान गणेश में भी प्रथम पूज्य देवता बनने की इच्छा थी तो पीछे रह जाने के कारण गणेश जी बहुत उदास हुए लेकिन तभी बड़े भाग्य की बात थी श्री नारद मुनि भी अपनी वीणा बजाते हुए भ्रमण करते करते वहां आ पहुंचे। तब उन्होंने गणेश जी को उदास देख उनसे इसका कारण पूछा, तब गणेश जी ने सारी बात महर्षि नारद को बताई। गणेश की सारी बात सुनकर नारद ऋषि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले कि " हे गणेश! जैसा की आप भली भाति जानते है की माता स्वतः में पूरी पृथ्वी के समान होती है और पिता परमात्मा स्वरूप होते हैं ओर तो ओर इसमें आपके पिता तो सबके परमात्मा है। "

यह सुनने के बाद भगवान श्री गणेश जी बिना कुछ सोचे समझे सीधा कैलाश पर्वत जा पहुंचे और उन्होंने अपनी माता पार्वती जी की उंगली पकड़कर छोटे बच्चे के भांति अपनी ओर खींचने लगे और बोले माता, पिता जी तो अपनी तपस्या में लीन और पता नहीं कितने समय बाद उठेंगे तो आप ही चल कर उनके निकट कुछ पल के लिए बैठ जाइये। 

पार्वती माता जोर से हंसती हैं और जाकर अपने पति परमेश्वर यानि भगवान शंकर जी के निकट बैठ जाती है। उसके पश्चात गणेश जी जमीन पर लेटकर अपने माता-पिता को प्रणाम करते है और उसके पश्चात् सात बार उनके चारों तरफ चक्कर लगाए और फिर से जमीन पर लेट कर दण्डवत प्रणाम कर और इससे पहले उनकी माता जी उनसे कुछ प्रश्न पूछी गणेश जी सीधे अपने मूषक पे विराजमान होकर ब्रह्म लोक के लिए निकल गए। वहां पर पहुंचे और ब्रह्मा जी तो सब ज्ञात हो चूका था और उन्होंने गणेश जी की ओर देख जैसे आँखों ही आँखों में इशारा करके उनके प्रथम पूज्य होने की स्वीकृति दे दी हो। कुछ वक्त पश्चात् सभी देवता गण अपने अपने वाहन पर पूरी वेग से पृथ्वी की परिक्रमा कर एक एक करके वाहन पर आ पहुंचे। 

जब सभी देवता वहाँ पर आकर एकत्र हो गए तब ब्रह्मा जी ने निर्णय सुनाया और कहा की केवल शरीर के बल मात्र से नहीं श्रेष्ठ मानी जा सकती है, और कहा की गणेश जी ने अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित कर चुके है और फिर सभी देवता ने पूरी बात सुनी और उसके पश्चात गणेश जी के सामने अपना मस्तक झुका लिया। इस प्रकार भगवान श्री गणेश जी विजेता साबित हुए और वो प्रथम पूजनीय माने जाने लगे। उसी समय देवों के गुरु बृहस्पति ने कहा था की अपने माता पिता की सेवा करने वाला पूरी पृथ्वी के परिक्रमा करने वाले से श्रेष्ठ माना जाता है। और तो और भगवान गणेश जी ने तो परम पिता परमेश्वर की परिक्रमा की है तो उनको कोई अस्वीकार कैसे कर सकता है।

Choose Your Color
whastapp