आज हम यानि वेदांत रस ले चलेगा आपको काशी मे ...आज हम बात करने जा रहे हैं, देश के सबसे ऐतिहासिक एवंं लोकप्रिय मंदिरों की जो की देश के सबसे पावन व पवित्र धरती काशी में स्थित है। जी हाँ, हम बात रहे काशी में स्थित श्री संकट मोचन मंदिर की...
माना जाता है की ये मंदिर करीब 400 साल पुराना है। यह वही ऐतिहासिक मंदिर है जहाँ पर संकट मोचन हनुमान जी ने गोस्वामी श्री तुलसीदास जी को दर्शन दिए थे...कहते है की हनुमान जी ने जब गोस्वामी तुलसीदास जी को दर्शन दिया तो उसके बाद हनुमान जी ने मिट्टी का स्वरूप लेकर वहीं पर स्थापित हो गए
सन् 1631- 1680 के बीच इस मंदिर का निर्माण हुआ था। इस मंदिर की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने ही कराया था। गोस्वामी तुलसीदास जी जब काशी में रुक कर श्री रामचरितमानस को लिख रहे थे तो उनके प्रेरणा स्रोत संकट मोचन हनुमान जी थे। इस ऐतिहासिक मंदिर की ये भी महानता है की यहाँ पर आने वाले भक्तों के सभी कष्ट भगवान श्री संकट मोचन हनुमान जी के दर्शन करने मात्र से दूर हो जाते हैं।
धार्मिक कथाओं की माने तो गोस्वामी तुलसीदासजी प्रतिदिन स्नान के बाद गंगा पार कर दूसरे तरफ जाते थे और और कहा जाता है की वहाँ पर बबूल का सूखा हुआ एक वृक्ष था, तो गोस्वामी तुलसीदास जी जब भी वहां जाते तो उस सूखे हुए बबूल को पानी दे देते थे। ऐसे ही प्रतिदिन पानी डालते डालते वह बबूल का वृक्ष धीरे धीरे हरा होने लगा।
एक दिन हमेशा की तरह तुलसीदास जी पानी देने गए तो वहाँ पर उसी बबूल के वृक्ष पर एक भूत बैठा हुआ मिला और उसने गोस्वामी तुलसीदास जी से कहा की " क्या आप प्रभु श्री राम जी से मिलना चाहते हैं ? अगर आप मिलना चाहते हैं तो मैं आपको प्रभु श्री राम जी से मिला सकता हूँ।" इस बात पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने हैरान होकर पूछा की ' तुम मुझे प्रभु श्री राम जी से कैसे मिला सकते हो?' गोस्वामी तुलसीदास जी इस प्रश्न का जवाब देते हुए उस भूत ने कहा की श्री राम जी से मिलने के लिए पहले आपको हनुमान जी से मिलना होगा। फिर तुलसीदास जी आश्चर्यचकित होकर पूछा की हनुमान जी कहा पर मिलेंगे ? इस पर वह भूत बोला की काशी के कर्णघंटा में एक प्रभु श्री राम जी का मंदिर हैं। वहीं पर सबसे एकांत में एक कुष्ठ रोगी आदमी बैठा होगा, वो भगवान हनुमान जी हैं। यह बात सुनते ही गोस्वामी तुलसीदास जी तुरंत वहाँ से उस मंदिर की ओर प्रस्थान कर गए।
धार्मिक कथाओं का मानना हैं की जैसे ही तुलसीदास जी उस कुष्ठ रोगी से मिलने के लिए गए तब वह उन्हे देख कर जाने लगा। यह देखकर तुलसीदास जी थोड़ा हैरान हुए और फिर तुलसीदास जी भी उसके पीछे पीछे चलते गए। ऐसे ही चलते चलते दोनों एक जंगल में पहुंच गए, उस जंगल को उस समय आनद कानन वन कहा जाता था जो अब अस्सी के नाम से जाना जाता हैं। जब तुलसीदास जी ने देखा की वो अब एक घने जंगल में पहुंच गए और सोचे की पता नहीं ये व्यक्ति कितनी और दूर जायेगा। यह सोच कर तुलसीदास जी ने तुरंत उस कुष्ठ रोगी के पैर पकड़ लिया और कहा की अब आप रुक जाइये मुझे पता हैं की आप हनुमान जी हैं और आप कृपा करके मुझे दर्शन दीजिये। गोस्वामी तुलसीदास जी के इस बात को सुनकर वह व्यक्ति यानी हनुमान जी वहीं रुक गए और अपने असली रूप में आकर गोस्वामी तुलसीदास जी को दर्शन दिये और तुलसीदास जी के विनती पर संकटमोचन हनुमान जी वहीं पर मिट्टी का रूप धारण कर स्थापित हो गए। और ये वही जगह यही जिसे हम ऐतिहासिक मंदिर श्री संकटमोचन हनुमान जी मंदिर के नाम से जानते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में कहा जाता हैं की तुलसीदास जी हनुमान जी के प्रिय भक्त थे। एक बार की बात हैं जब तुलसीदास जी के बांह में पीड़ा होने लगी तो उन्होंने नाराज होकर हनुमान जी से एक शिकायत की और कहा की "हे संकट मोचन हनुमान आप तो सभी के कष्ट दूर करते हैं, तो मेरा भी कष्ट दूर करें और ये कहकर वो नाराज होकर उन्होंने हनुमान बाहुक लिख डाली। और धार्मिक मान्यताओं की माने तो हनुमान बाहुक लिखते ही उनकी सभी कष्ट दूर हो गए। इसीलिए हम श्री हनुमान जी को संकट मोचक भी कह कर बुलाते हैं।
|| जय श्री राम ||