आपने भगवान श्री कृष्ण की अनेक कथाओं और लीलाओं को श्रवण किया होगा, वेदांतरस के माध्यम से आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण के प्रिय भगत सधना की प्रचलित कथा सुनते है..
आप इस कथा को देख भी सकते है ; एक कसाई की सच्ची कहानी
कथा के अनुसार एक कसाई भगवान शालिग्राम के भक्त था। उसका नाम सधना था। सधना बहुत ही ईमानदार व भोला था, वह हमेशा भगवान का नाम लेता रहता था और उनकी कीर्तन करता रहता था। यहाँ तक की वो जब मांस काटता या बेचता तब भी भगवान के नाम का गुणगान करता रहता था। ऐसे ही एक दिन कसाई सधना भगवान का नाम लेते हुए अपनी मस्ती में कही जा रहा था, तभी अचानक से उसे अपने पैरों में पत्थर का स्पर्श महसूस हुआ, जब उसने नीचे देखा तो वह एक काला पत्थर था सधना कसाई ने वह पत्थर को यह सोच उठा लिया की वह उसे अपने दुकान ले जाकर उससे माँस का वजन करेगा।
अगले दिन से कसाई उस पत्थर से माँस तोलने लगा, जो भी आता वह उसी पत्थर से माँस तौल के देता। यह कोई मामूली पत्थर नहीं था, इसकी एक खास बात यह थी की वह जितना भी वजन करना चाहता है वह काला पत्थर भी उतने ही वजन का हो जाता है। समय के साथ साथ उस काले पत्थर की लोकप्रियता धीरे धीरे पूरे गाँव में फैलने लगी। जब भी सधना को माँस तोलना होता है वह पत्थर उतने ही वजन का हो जाता है। अगर सधना को एक किलो माँस तोलना होता, तो वह पत्थर एक किलो का हो जाता और यदि उसे आधा किलो तोलना होता तो आधा किलो का हो जाता था। इस असाधारण पत्थर को देखने के लिए दूर दूर से लोग आने लगे और सधना के दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी, भीड़ बढ़ने की वजह से कसाई सधना की माँस की बिक्री भी बढ़ गयी थी। फिर एक दिन धीरे धीरे ये बात एक ज्ञानी ब्राह्मण के पास पहुंची। लेकिन ब्राह्मण ऐसे जगह पर जाना तो नहीं चाहता था जहाँ पर माँस की बिक्री होती हो, लेकिन उस चमत्कारी और असाधारण पत्थर को देखने की जिज्ञासा ने उसको वहाँ तक ले कर चली गयी। वहाँ पर पहुंच कर ब्राह्मण दूर से ही सधना कसाई को उस पत्थर से माँस तोलते हुए देख रहा था और उसने देखा की किस प्रकार से वह पत्थर आवश्यकता के अनुसार अपना वजन परिवर्तित कर लेता था, यह देख कर ब्राह्मण एकदम आश्चर्यचकित हुआ। यह देख ब्राह्मण सधना कसाई के पास गया तो सधना ब्राह्मण को देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुआ और साथ ही साथ सधना बहुत प्रसन्न भी हुआ। फिर सधना ने ब्राह्मण का नर्म भाव से स्वागत किया और ब्राह्मण को बैठने के लिए कहा। फिर सधना ने उस ब्राह्मण से उसके दुकान पर आने का कारण पूछा तो ब्राह्मण ने बताया की वह उस काले पत्थर को देखने आया है। ब्राह्मण ने बताया की वह कोई मामूली पत्थर नहीं है, वह भगवान शालिग्राम जी है। ब्राह्मण क्रोधित हो कर कहते है की भगवान शालिग्राम जी को मांस के साथ रखना बहुत बड़ा पाप है। सधना बहुत ही सरल और भोले स्वभाव का इंसान था और यह सुनकर उसको लगा की वो अनजाने में बहुत बड़ी गलती कर रहा था। सधना ने ब्राह्मण से शमा मांगते हुए कहा की वह तो ब्राह्मण है वह शालिग्राम जी को अपने साथ लेकर जाए और उनकी पूजा अर्चना करे। यह कह कर सधना ने उस पत्थर को उस ज्ञानी ब्राह्मण को दे दिया। वह ब्राह्मण शालिग्राम जी को बड़े आदर सम्मान से अपने घर लेकर आए और वहाँ पर भगवान शालिग्राम जी को स्नान कराया और बड़ी भक्ति भाव से उनकी पूजा पाठ शुरू कर दिया। ऐसे ही कुछ दिन बित गए। एक दिन रात को ब्राह्मण के स्वप्न में भगवान शालिग्राम जी आए और उन्होंने ब्राह्मण से कहा की वह उसके सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए है लेकिन तुम मुझे उस कसाई सधना के पास वापिस छोड़ आओ। भगवान शालिग्राम कहते है की सधना हमेशा मेरे नाम का गुणगान करता रहता है, जो की मुझे बहुत अच्छा लगता है और ऐसे भक्त के लिए मैं कही भी रहने को तैयार हूँ।
आज सधना कसाई के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर साक्षात् भगवान शालिग्राम ने सधना के सह रहने की इच्छा व्यक्त करी। अगली ही सुबह ब्राह्मण भगवान शालिग्राम जी को अपने साथ लेकर उस कसाई सधना के दुकान पर गया और उन्होंने सधना को पूरी बात बताई और भगवान शालिग्राम जी को सधना को सौंप देता है। यह सब सुनकर सधना बहुत प्रसन्न होता है और मन ही मन में वचन लेता है की वह अब से माँस नहीं बेचेगा और वह अपना अधिक से अधिक समय भगवान के नाम लेने और कीर्तन करने में गुजरेगा।
।। श्री शालिग्राम जी की कहानी ।।