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Shrimad Bhagwat Katha  भागवत कथा हिंदी में

Shrimad Bhagwat Katha भागवत कथा हिंदी में

हमने अक्सर श्री कृष्ण की बहुत सी दिव्य लीलाओ का श्रवण किया है, उन में से एक लीला श्री कृष्ण की प्रिये गोपी की भी है, तो चले हमारे यानि वेदांत रस के संग कृष्ण की लीला का आनंद प्राप्त करेने।कहानी के  अनुसार वृन्दावन की एक गोपी रोज दूध और दही बेचने मथुरा जाती थी। एक दिन की बात है व्रज में एक संत आए थे, वह गोपी भी कथा सुनने गयी, व्रज के वह संत श्री कृष्ण की महीना का वर्णन कर रहे थे, वह  बोल रहे थे की "भगवान के नाम लेने से बड़े से बड़े संकट कट जाते है। अगर ज़िंदगी में हमेशा खुश रहना है तो भगवान का नाम कभी मत छोड़ना।"कथा विश्राम होने के बाद, गोपी अगले दिन फिर दही बेचने मथुरा गए, बीच में  यमुना जी थी तभी गोपी को संत की वह बात याद आ गई। संत ने कहा था की भगवान तो भवसागर से पार लगाने वाला है। तो जिस भगवान के नाम से भवसागर पार कर सकते है, तो उन्ही के नाम से मैं एक साधारण सी नदी नहीं पार कर सकती है ?ऐसा ही सोच कर वह गोपी ने मन में भगवान का नाम लिया और उसी का आश्रय लेके भोली सी गोपी नदी की ओर चल पड़ी। अब जैसे ही भोली भाली गोपी ने यमुना जी में पैर रखा तो उन्हें यह लगा मानो वह जमीन पर चल रही है और ऐसे ही धीरे धीरे करके वो पूरी नदी पार कर गई और मन ही मन बहुत खुश हुई और सोचने लगी की संत जी ने तो उत्तम मार्ग देखा दिया, अब तो मैं रोज ऐसे ही यमुना जी को पार कर जाऊगी, नाविक को कुछ पैसे भी नहीं देने पड़ेगे। एक दिन गोपी के मान में विचार आया की संत जी ने मझे इतना उत्तम मार्ग दिखाया है, तो मैं उन्हें एक दिन भोजन के लिए बुला लू। अगले दिन जब वो दही बेचने गयी तो वो संत से जाकर मिली और भोज का आमंत्रण दिया। इस बात पर संत सहमत हो गए और गोपी के साथ उसके घर भोज के लिए जाने को तैयार हो गए। 

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जाते वक्त रास्ते के बीच में फिर से यमुना नदी पड़ी तो संत नाविक को बुलाने लगा तभी वह गोपी उन्हें बीच में रोकते हुए संत जी को बोलती है की "संत जी नाविक को बुलाने की क्या ज़रूरत है, हम ऐसे नदी पार कर जायेंगे।"  इस बात पर संत हैरान हो कर बोले की "गोपी हम बना नाविक के यमुना जी को कैसे पार करेंगे।"  तब गोपी बोली की "आपने ही तो एक दिन कथा के दौरान कहा था, की अगर आप भगवान का नाम लेंगे तो भवसागर भी  पार कर सकते है तो मैंने सोचा क्यों न एक बार यमुना जी को पार करके देखा गए। तब मैंने भगवान का नाम लेके निकल गयी और पार कर गयी।" यह सुनके संत दांग रह गए और उनको विश्वास नहीं हो रहा था और उन्होंने गोपी से कहा की "हे गोपी आप आगे आगे चलो मैं आपके पीछे पीछे आता हूँ।" हमेशा की तरह गोपी ने भगवान का नाम लिया और नदी पार कर गयी। लेकिन जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो वो पानी में गिर गया, संत को आश्चर्य हुआ, और जब गोपी ने देखा संत जी पानी में गिर गए है, तो वह वापस आयी और संत का हाथ पकड़ के ले जाने लगी तो संत भी गोपी की तरह चलते हुए नदी पार कर गए। नदी पार होते ही संत गोपी के चरण पकड़ के बोले की गोपी तू धन्य हो सही मायने में तुमने भगवान के नाम का आश्रय लिया हमने तो सिर्फ लोगो को भगवान नाम की महिमा बताई लेकिन कभी खुद भगवान के नाम का आश्रय नहीं लिया |तो भक्तो आज आपने वेदांत रस के माध्यम से यह जाना की कैसे ठाकुर की प्रिये गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय ले कर यमुना जी को पार किया।  भगवात नाम की महिमा अपरम्पार है, मनुष्य की हर समस्या का एकमात्र उपाए भगवान के नाम का आश्रय ही है  

|| राधे राधे ||

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