सिद्धपीठ सियाराम किला, मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम और माता सीता का दिव्य महल माँ सरयू के तट के स्तिथ था। जहां पर प्रभु श्री राम ने अनेक लीलाए की, समय चक्र में वह महल क्षतिग्रस्त होकर टीले के रूप में परिवर्तित हो गया। उसी पवित्र स्थान पर श्री जानकी शरण जी महाराज ने {झुनकी बाबा} ने दिव्य सिद्धपीठ सियाराम किला आश्रम का भव्य निर्माण करवाया। इस आश्रम का निर्माण कार्य 1915 में संपन्न हुआ।
आज के समय में इस स्थान को हम सभी लोग जानकी घाट के नाम से भी जानते है। श्री जानकी शरण जी महाराज जिनको हम झुनकी बाबा के नाम से भी जानते है। झुनकी बाबा का जन्म बिहार राज्य के नवादा जिले के कैशोरी नमक गांव में सन 1855 में हुआ था। इनके पिता का नाम दुबरी शर्मा था जो की एक भूमिहार ब्राह्मण थे। झुनकी बाबा जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे। साधु संतो में इनकी बहुत गहरी रूचि थी। जिसके कारण इनके पुरे घर वालो को डर था की झुनकी बाबा साधु संतो के साथ रह कर कही यह भी साधु या संत ना बन जाए। इसी कारण इनके घर वालो ने इनका जल्दी से विवाह करवा दिया, लेकिन झुनकी बाबा कहा मानने वाले थे। झुनकी बाबा घर छोड़ कर अयोध्या भाग आए। कई वर्षो की घोर तपस्या के बाद बाबा ने गांव में घर घर जाकर लोगो को शिक्षा दी। गुरु जी उस काल में योगविद्या में निपुण थे। उनके द्वारा पढ़ाई गए कई छात्रों ने योगदर्शन की अनेक पुस्तके लिखी। उनमे से ही एक वैष्णव हठयोग दर्शन, इस पुस्तक में सभी योगो के बारे में सचित्र वर्णन किया है। पुनः बाबा जी जब अयोध्या आए तब उन्हें मिथिलाशरण जी महाराज का साथ मिला। इनके सहयोग और महाराज जी के तप से सियाराम किले का निर्माण सरयू तट पर हुआ। उसी काल में स्थानीय साधु संतो को सरयू नदी में नहाने में कष्ट होता था इसीलिए इस स्थान पर पक्के घाट का निर्माण करवाया गया। आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा जी झुनकी घाट अयोध्या का पहला पक्का घाट है। सम्पूर्ण अयोध्या में इतना दिव्य और जागृत स्थान आपको और कही नहीं मिलेगा। इस स्थान से दर्शन मात्र से ही आप ऊर्जा से भर जाएंगे। वर्तमान समय में यहाँ के पीठाधीश्वर श्री करुणानिधान शरण जी महाराज है। इनकी ही देख रेख में यहाँ पर गौसेवा, संत सेवा, विद्यार्थी सेवा, चिकित्सक सेवा, आदि सेवाओं का संचालन किया जा रहा है।