नेपाली मंदिर अयोध्या के मध्य में स्तिथ विभीषण कुंड के उत्तर दिशा में स्तिथ है। यहाँ पर भगवान कूर्म नारायण की पूजा की जाती है। भगवान कूर्म नारायण इस मंदिर में विशाल शालिग्राम के रूप में विराजमान है। इस मंदिर का नेपाल के प्रधानमंत्री श्री जंग बहादुर राणा की बहु राजकुमारी देवी ने करवाया था। मंदिर निर्माण के बारे में कहा जाता है की एक बार नेपाल के मुक्तिनाथ धाम से निकलने वाली काली गंडकी नदी में से कुछ लोगो ने 15 इंच डायमीटर के विशाल शालिग्राम जी प्राप्त हुए। {नेपाल सहित पुरे विश्व में हिन्दू धर्म में शालिग्राम पत्थर का बड़ा महत्व है हिन्दूधर्म में शालिग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है और पूजा जाता है। यह पत्थर सिर्फ नेपाल में बहने वाली काली गंडकी नदी में ही पाया जाता है} हिन्दू धर्म में महत्व होने के कारण धनवान लोग इतने बड़े शालिग्राम जी का अच्छा मूल देंगे, यह सोच कर दो लोग इतने बड़े शालिग्राम के पत्थर को नेपाल के राजपरिवार में ले गए और उन्हें अच्छे मूल पर बेच दिया। उसके बाद राजपरिवार के पुरोहितो को इस विषय की जानकारी हुई तो उन्होंने राजपरिवार को बताया की घर में इतनी बड़ी मूर्तियों के पूजा का विधान नहीं है इसीलिए शालिग्राम को वापस भेज दिया गए । जब इसकी जानकारी राजकुमारी को हुई तो उनके यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ। पुरोहितो के कहने पर शालिग्राम जी को वापस भेजने के लिए कुछ लोगो को बुलाया गया लेकिन वह शालिग्राम अपनी जगह से तस से मस ना हो। यह देखकर राजकुमारी देवी जी ने शालिग्राम को अपने पास रखने और उसकी पूजा करने की इच्छा व्यक्त की तो राजपरिवार ने उनको अनुमति दे दी। उसी रात राजकुमारी जी को स्वप्न में भगवान शालिग्राम उन्हें भारत के अयोध्या स्तिथ पुण्य धाम में मंदिर बनवा कर वहाँ स्थापित करने की आज्ञा दी। ऐसा वंशानुगत जानकारी प्राप्त होती हैं की कुछ समय पश्चात राजकुमारी देवी अयोध्या पहुंची और यहाँ विभीषण कुंड के समीप पंडित मोदनाथ शर्मा के प्रबंधकत्व में सन 1895 में मंदिर निर्माण प्रारम्भ हुआ और सन 1900 में भगवान कूर्मनारायण यहाँ शालिग्राम के रूप में विराजित हुए। वर्तमान में इस मंदिर के आवसीय परिसर में 35 कमरे है। जहा विद्यार्थी और तीर्थयात्री रहते है। मंदिर परिसर में एक गौशाला भी है। नेपाली मंदिर को मंदिर संचालन हेतु नेपाल के गुठि संस्थान द्वारा 60,000 रूपये प्रतिवर्ष की सहायता दी जाती है
वर्तमान महंत - स्वामी हरी प्रपन्नाचार्य जी
नियमित समय सारणी - प्रातः 6 बजे दुग्धाभिषेक, 7 बजे आरती तत्पश्चात भगवान को फल और चने का भोग लगाया जाता है और भक्तो को दर्शन हेतु कपाट खोल दिए जाते है। पुनः 11 बजे भगवान को राजभोग दिया जाता है, राजभोग के पश्चात कपाट बंद हो जाते है और पुनः 4 बजे सांयकाल खुलता है संध्या आरती 7 बजे होती है।