एक बार की बात है एक राजा ने बिहारी जी का मंदिर बनवाया और बिहारी जी की सेवा करने के लिए एक पुजारी जी को नियुक्त किया । पुजारी जी प्रतिदिन बड़े भाव और प्रेम से पूजा करते थे। भगवान की पूजा करते करते पुजारी की उम्र बीत गई, राजा रोज एक माला अपने सेवक के हाथो पुजारी जी को भेजा करता था, पुजारी जी वह माला सेवक से लेकर बिहारी जी को पहना देते थे । जब राजा बिहारी जी के दर्शन करने आता तो पुजारी जी वही बिहारी जी को अर्पित माला उतार कर राजा को पहना देते थे, यह रोज का नियम था।
रोज़ की भांति ही राजा ने आपने सेवक के हाथो बिहारी जी के लिए माला भिजवाई, लेकिन आज सेवक के हाथो एक संदेश भी भिजवाया की आज राजा मंदिर नहीं आ पाएगे । पुजारी जी ने माला बिहारी जी को पहना दी और उनके मन मै विचार आया की आज तक मै बिहारी जी को चढ़ी माला राजा को ही पहनता आ रहा हूँ, ये सौभाग्य मुझे नहीं मिला। जीवन का क्या भरोसा कब रूठ गए, आज मेरे प्रभु ने मेरे पे कृपा की है। आज तो राजा आएँगे नहीं क्यों ना ये माला आज मै ही पहन लू, यह सोच कर पुजारी जी ने बिहारी जी के गले से माला निकाल कर स्वयं धारण कर ली। जैसे ही पंडित जी ने माला पहनी वैसे ही सेवक आके बोला की राजा जी की सवारी मंदिर तक पहुचने वाली है, इतना सुन कर पंडित जी घबरा गए, उन्होंने सोचा अगर राजा ने मुझे माला पहने हुए देख लिया तो मुझपर क्रोधित हो जाएंगे। इस भय से उन्होंने माला वापस उतार कर बिहारी जी को पहना दी, जैसे ही राजा दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करते है, पंडित जी नियम के अनुसार बिहारी जी के गले से माला उतार कर राजा को पहना देते है । जब पुजारी जी राजा को माला पहना रहे थे तभी राजा ने माला पर गिरा हुआ सफ़ेद बाल देख लिया। राजा को संदेह हुआ की कही पुजारी जी ने मेरे आने से पहले स्वयं ही यह माला तो नहीं पहन ली ? , यह सोचकर राजा को बहुत गुस्सा आया। राजा ने पुजारी जी से पूछा की ये सफ़ेद बाल किसका है ? पंडित जी को लगा अगर मेने सच बोला तो राजा मुझे दंड दे देंगे इसीलिए उन्होंने भय से बोल दिया की महाराज यह सफ़ेद बाल तो बिहारी जी का है। अब तो राजा गुस्से से आग बबूला हो गया की ये पुजारी तो झूठ बोल रहा है, भला बिहारी जी के कहा सफ़ेद बाल होते है।
राजा ने कहा - पंडित कल सुबह मै श्रृंगार के वक़्त आऊंगा और देखूंगा की बिहारी जी के बाल सफ़ेद है या फिर काले,अगर बिहारी जी के बाल काले निकले तो तुम्हे फांसी की सजा दी जाएगी, राजा हुकम सुनाकर चला गया। अब पुजारी बिहारी जी के समक्ष रोकर विनती करने लगा, प्रभु मै जनता हूँ, की मैंने आपके सामने झूठ बोलने का अपराध किया है और अपने गले में डाली माला आपके गले में पुनः दाल दी। आपकी सेवा करते करते मै वृद्ध हो गया, बस यह लालसा रह गई की आपकी माला उतार कर कभी मै भी पहन सकू, बस इसी लोभ की वजह से मुझसे यह अपराध हुआ, मेरे ठाकुर जी पहली बार मुझे ये लालच आया और ये विपत्ति आन पड़ी । मेरे नाथ अब नहीं होगा ऐसा अपराध, अब आप ही मुझे बचा सकते हो नहीं तो कल सुबह मुझे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। पुजारी पूरी रात रोते रोते यही कहता रहा मुझे बचा लो प्रभु !
सुबह होते ही राजा मंदिर में आ गए, पुजारी जी से कहा आज का श्रृंगार वह स्वयं करेंगे, इतना कह कर पुजारी जी ने जैसे ही बिहारी जी का मुकुट उतारा तो वो यह देखकर हैरान हो गए की बिहारी जी के सारे बाल सफ़ेद थे, राजा ने सोचा की पुजारी ने बचने के लिए बिहारी जी के बालो को सफ़ेद रंग दिए होंगे, गुस्से में तमतमाते हुए बोला की मुझे जांच करनी है, कि बाल असली है या नकली उसने यह समझने के लिए जैसे ही बिहारी जी के बाल को तोडा तो, बिहारी जी के सर से खून की धार बहने लगी। राजा ने उसी क्षण बिहारी जी के चरण पकड़ लिए और क्षमा मांगने लगा ।
बिहारी जी की मूर्ति से आवाज़ आई - "राजा तुमने मुझे आज तक केवल मूर्ति ही समझा इसीलिए आज मै तुम्हारे लिए एक मूर्ति ही हूँ।" और इस सेवक ने मुझे साक्षात् भगवान समझा है, उनकी श्रद्धा का मान रखने के लिए मुझे आज अपने बाल सफदे करने पड़े और रक्त की धार बहानी पड़ी ।
यह कहानी किसी पुराण से तो नहीं लेकिन मर्म किसी पुराण की कथा से कम नही है, कहते है - समझो तो देव नहीं तो पत्थर श्रद्धा हो तो उन्ही पथरो में भगवान सप्राण होकर भक्त से मिलने आ जाएंगे।