*कभी आपके साथ ऐसा हुआ है। अगर नहीं हुआ तो ये पढ़ने के बाद जरूर होगा। *
मैअपनी दादी के साथ पहली बार उनके ग्रुप के साथ बिहारी जी के दर्शन करने के लिए वृन्दावन गयी थी। मेरी आयु उस समय रही होगी लगभग 11 वर्ष।
मेरी दादी ने मुझे बचपन मै बिहारी जी की और उनके दीवानो की इतनी कहानिया सुनाई थी की मै बिहारी जी के दर्शन करने के लिए बड़ी उत्सुक थी
हम सब बिहारी जी के मंदिर के बाहर बिहारी जी को चढ़ाने के लिए कमल के पुष्पों की माला और पेड़े खरीद रहे थे। हम सब लोग पूरी रात सफर करने के कारण बहुत थक चुके थे। हम में से ही कुछ लोग जाकर मंदिर के बाहर बानी सीढ़ियों पे जाकर बैठ, मै भी उन्ही लोगो के साथ जाकर बैठ गयी। अभी मुझे बैठे कुछ ही देर हुई थी और मुझे ऐसा लगा की मेरे पास से कोई तेज़ी से भाग कर मंदिर के प्रवेश द्वार तक गया और अंतरध्यान हो गया हो।
जब मैने उसकी तरफ देखा तो मुझे ऐसा लगा की क्या मै उससे जानती हूँ ? कही ये वो तो नहीं, जिनके बारे मे मैंने बचपन से दादी के मुख से कथाए सुनी है । मुझे पता है की वो कैसे चलता है , कैसा दिखता है।
पहली ही बार मे ऐसा लगा की मेरा रोम रोम पुलकित हो उठा । मेने अपने साथ ऐसा होते हुए पहले कभी नहीं देखा था। मै उसी वक़्त उठकर अपनी दादी के पास गई और मेने उनसे बोला की :- "दादी-दादी अभी मेने बांके बिहारी जी को मंदिर के अंदर प्रवेश करते हुए देखा है।"
दादी ने मुझे तुरंत सबके सामने डाटते हुए बोला की :- "तू पागल हो चुकी है क्या लड़की, ऐसा कुछ नहीं होता जैसा तू सोच रही है।"
मै जाकर अपनी जगह पर वापस बैठ गई । मुझे इस बात का दुख नहीं था की मुझे दादी ने सबके सामने डाट लगाई। मुझे दुख तो इस बात का था की जिनके मुँह से मै बचपन से बांके बिहारी की कहानियाँ सुनती आ रही थी। वो कह रहा है की ऐसा कुछ नहीं होता। यदि ऐसा कुछ नहीं होता तो हम यहाँ क्या करने आए है ???
खैर अब हम सब लोग मंदिर के अंदर बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहा थे। लेकिन मुझे अभी भी वही सुगंध महसूस हो रही थी परन्तु मुझे वह सुगंध केवल वही तक महसूस हो रही थी जहा पर जा कर बिहारी जी अन्तरध्यान हुए थे। मै बार बार मंदिर से बाहर निकल के उसी जगह पर जा रही थी सुगंध महसूस करने लिए। मेने यह काम तीन बार किया। जब मै चौथी बार बाहर जाने लगी तब दादी ने मुझे फिर डांट लगाई और बोली की "तू बार बार बाहर क्या करने जा रही है?" यह हमारे लिए एक नई जगह है, अगर तू यहाँ पर खो गई तो तुझे यहाँ ढूंढना बहुत मुश्किल हो जाएगा हमारे लिए। इस बार जब दादी ने मुझे डाटा तो मुझे अच्छा नहीं लगा क्योकि दादी ने मुझे आज से पहले कभी नहीं डाटा था और आज उन्होंने मुझे 2 बार डाट लगाई।
खैर अब हम सब लोग बिहारी जी के दर्शन करने लिए उनके कपट खुलने का इंतज़ार कर रहे थे।। अगले ही क्षण जैसे ही कपट खुले तो मुझे देख कर बड़ा अचम्भा हुआ की वही सुगंध ,वही वस्त्र ,वही श्रृंगार। मै दादी की सारी डाट को भूल कर वापस उनके पास गई और मैने उनसे बोला की " मेने इन्ही को तो बाहर देखा था। " अब दादी ने हमारे साथ जो लोग आये थे, उनमे से एक महिला के कान मै जाकर कुछ बोला और मेरा हाथ पकड़ कर उसी धर्मशाला पर ले आई जहा हम लोग ठहरे हुए थे। दादी ने आश्रम के कमरे मे ले जा कर कमरा अंदर से बंद कर लिया । जैसे ही दादी दरवाज़े की ज़ंज़ीर लगा कर मेरी तरफ मुड़ी। उनके चेहरे की दशा ही बदली हुई थी। उन्होंने मुझे तुरंत अपने गले से लगा लिया और हम पता नही उसी तरह से कितनी देर तक खड़े रहे।
मुझे अभी भी उन्हे व्यव्हार कुछ समझ नहीं आ रहा था। बहुत देर बाद जब दादी ने मुझे छोड़ा तो में प्रश्चित की तरह खड़ी थी और उनकी तरफ देख रही थी। जब दादी ने थोड़ी देर बाद अपना मौन तोडा, तब वो बोली की " पगली तुझे अभी भी नहीं समझ आया, तेरे पे बांके बिहारी की कृपा हो गई जो तूने अपनी 11 वर्ष की आयु में पा लिया है, वो मुझे 70 वर्ष की आयु में भी नहीं मिला। अरे पगली तूने तो हमारा पूरा कुल ही तार दिया है। "
इसके बाद जब तक हम वृन्दावन में रहे तब तक हम अपने कमरे के बाहर नहीं निकले अगर कोई पूछने आता तो दादी उसको यह बोल कर भेज देती थी की तबियत ख़राब है!!
* ना सुबह की इच्छा,ना शाम की चाहत है,** जिस पहर तुम मिलो, वही इश्क़ की इबादत है *