आज हम वेदांतरस के माध्यम से देखेंगे की अर्जुन अपने लक्ष्य के प्रति कितना समर्पण थे ! पांडवों को सभी युद्धों के स्वामी द्रोणाचार्य द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों की परीक्षा लेते हैं जब वह एक पेड़ पर एक मिटटी के खिलौना का पक्षी रखते हैं और उन्हें चुनौती देते हैं कि वे पक्षी की आंख पर अपना तीर मारें।
परीक्षण शुरू करने से पहले, गुरु द्रोणाचार्य सभी से एक प्रश्न पूछते है कि जब उन्होंने लक्ष्य को देखा तो वे क्या देख सकते थे। पांडव अलग-अलग उत्तर देते हैं, जिसमें पक्षी, पत्ते, पेड़ आदि शामिल हैं। केवल अर्जुन बिना किसी हिचकिचाहट के कहते है कि उन्होंने पक्षी की आंख के अलावा कुछ नहीं देखा। द्रोणाचार्य जी अर्जुन को अपना निशाना लेने के लिए कहते हैं।
अर्जुन ने बिना किसी चूक के अचूक निशाना लगाया, अर्जुन खिलौना पक्षी की आंख पर वार करते है। महाभारत का यह किस्सा एक निश्चित लक्ष्य रखने और दृढ़ निश्चयी रहने के महत्व को दर्शाता है। इससे हमे ये सीख मिलती है की हमेशा ध्यान भटकता रहेगा लेकिन वही सफल होगा जो अपने दिमाग को लक्ष्य पर रखेगा।