भगवान कृष्ण के जन्म को एक वर्ष बीत चुका था। पहले जन्मदिन के शुभ अवसर पर, नंद बाबा ने एक बड़ा उत्सव मनाया। घर में कई गोपियों की भीड़ थी। पर्व में आए ब्राह्मण छोटे कृष्ण को मंत्र जाप कर अनेक आशीर्वाद दे रहे थे।
उत्सव के लिए आए लोगों को नंद बाबा अनाज, गाय और अन्य सामान दे रहे थे। कुछ समय बाद यशोदा मैया ने कृष्ण का अभिषेक किया। तब उसने देखा कि नन्हा कृष्ण सो रहा था। उसने प्यार से उसे पालने में सुला दिया और उस पालने को एक बैलगाड़ी के नीचे शोर से दूर रख दिया।
कुछ देर बाद नन्हा कृष्ण जाग गया और उसे बहुत भूख लगने लगी। वह दूध पीने के लिए रोने लगा। लेकिन घर में जश्न की वजह से इतना शोर था कि किसी को उसकी चीख सुनाई नहीं दी। बाल कृष्ण केवल लीला करने के लिए जाने जाते हैं, इसलिए सभी का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने पालने के पास खड़ी बैलगाड़ी को इतनी जोर से मारा कि बैलगाड़ी पलट गई। उस बैलगाड़ी पर दूध और दही से भरे बर्तन रखे हुए थे। वे सभी बर्तन और अन्य बर्तन टूट गए और बैलगाड़ी के पहिए उखड़कर इधर-उधर बिखर गए।
इस घटना को देखकर सभी चरवाहे, नंदा बाबा और यशोदा मैया हैरान रह गए। वे आपस में कहने लगे - "अरे क्या हुआ, यह बैलगाड़ी अपने आप कैसे पलट गई?" वहां खेल रहे दूसरे बच्चों ने कहा- ''कान्हा ने रोते हुए इस बैलगाड़ी को इस तरह लात मारी कि वह दूसरी तरफ पलट गई.'
परन्तु वहाँ खड़े लोगों में से किसी ने भी बच्चों की बातों पर विश्वास नहीं किया। सभी ने सोचा कि एक छोटा बच्चा बैलगाड़ी को एक ठोकर में कैसे मोड़ सकता है? यशोदा मैया बहुत डरी हुई थी। नंदा जी ने उन्हें यह कहकर सांत्वना दी कि कान्हा को किसी बड़ी मुसीबत से बचाने वाले भगवान ही थे, नहीं तो बैलगाड़ी भी उनकी तरफ गिर सकती थी। गांव वालों में से किसी को भी समझ में नहीं आया कि यह कृष्ण की बहुत छोटी लीला है, जो भविष्य में वे देखने जा रहे हैं।