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भजन का भाव     

भजन का भाव     

 प्रत्येक भक्त ईश्वर को अलग-अलग तरीके से भजता है। अपनी-अपनी भावना और श्रद्धा के अनुसार प्रत्येक भक्त ईश्वर के अलग -अलग रूपों में विश्वास रखते हैं। और अपनी मान्यता के अनुसार उसी रूप में उनका भजन -कीर्तन करते हैं। ईश्वर भी उन्हें उसी रूप में दर्शन देते हैं जिस रूप में भक्त चाहता है ,भगवान भी अपने भक्त की भावना को ध्यान में रखते हुए उनका अनुसरण करते है। 

       कहा जाता हैं कि अगर आप ईश्वर का स्मरण करते हैं तो ईश्वर भी आपका स्मरण करेंगे। अगर कोई भक्त उनके लिए व्याकुल हैं अर्थात उनके वियोग में  रह नहीं पाता अपना सर्वस्व उनके चरणों में अर्पण कर दिया हैं तो भगवान भी उस भक्त के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं ईश्वर भी अपने भक्त की जुदाई सहन नहीं कर पाते वो भी तन, मन, धन अर्थात सर्वस्व सहित अपने भक्तों के हो जाते हैं। 

      अगर कोई उन्हें अपने मित्र या ग्वाल-बालों की तरह मानता हैं अपने मित्र की तरह उनके साथ व्यवहार करता हैं तो वो भी उनके साथ मित्रवत व्यवहार करते हैं। और यदि कोई नन्द-यशोदा की तरह ईश्वर को अपना पुत्र मानकर उनकी पूजा आराधना करता हैं तो -वे भी उन भक्तों के साथ पुत्रवत व्यवहार ही  करते हैं और उनका कल्याण करते हैं। 

      इसी प्रकार रुक्मणि की भांति अपना पति  समझकर आराधना करने वालों को पति जैसा ,हनुमान की तरह अपना स्वामी समझने वालों को स्वामी जैसा और गोपियों की तरह प्रेम पूर्वक भजने वालों के साथ प्रियतम जैसा व्यवहार करके उनका उद्धार करते हैं। और साथ ही साथ उनको अपनी दिव्या लीला-रस का भी सुख प्राप्त करवाते हैं।

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