श्री कृष्ण के करौली वाले मंदिर में एक गुजरी प्रतिदिन दूध देने आती थी। लालच के कारण वो दूध में पानी बहुत अधिक मिलाया करती थी। परन्तु मदन मोहन जी और उस दूध वाली अर्थात गुजरी का आपस में अत्यधिक लगाव था। एक दिन पानी मिलते समय गुजरी ने दूध में किसी बावड़ी का पानी मिला दिया और संयोगवश उसमे एक मछली आ गई। जब मदन मोहन अर्थात श्री कृष्ण ने अपने दूध में मछली पाया तो उस गुजरी को डांट कर अपनी सेवा से हटा दिया।
गुजरी दो दिन तक मदन मोहन के दर्शन से वंचित रही और इसी वियोग में उसने कुछ खाया भी नहीं और पूरा दिन रोती रही। तीसरे दिन श्री कृष्ण स्वयं उसके घर पहुंचकर उससे दूध मांगने लगे और कहा की मैं सिर्फ तुम्हारा लाया हुआ दूध पियूँगा और बात करते हुए ही मंदिर के उतथापन की घंटी को गुसाईं जी ने बजा दी। श्री कृष्ण जी ने भागने के चक्कर में अपने पीले वस्त्र को वही छोड़ दिया और और उस दूध देने वाली के दुपट्टे को ओढ़कर वही खड़े हो गए।
जब गुसाईं जी ने ठाकुर जी के दर्शन की प्राप्ति की तब वो आनंद में लिप्त होकर पूछने लगे की आप किसकी ओढ़नी को लेकर आये हैं। उसी समय वह गुजरी भी ठाकुर जी का पीताम्बर लिये उसी मंदिर में पहुंच गई। गुसाईं जी को भक्त और भगवन की इस प्रेम कथा को समझने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा। ठाकुर जी ने गुसाईं जी को आदेश देते हुए कहा की यह गुजरी मुझे अत्यधिक प्रिय है। इसे प्रतदिन मेरे मंदिर में मेरे दर्शन के लिये अवश्य आना चाहिये । तभी से लेकर आज तक मदन मोहन जी को गुजरी की याद में काली ओढ़नी पहनाई जाती है।